गीता प्रेस, गोरखपुर >> जानकी मंगल जानकी मंगलहनुमानप्रसाद पोद्दार
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जानकी मंगल सरल भावार्थ सहित....
।। श्रीहरि: ।।
प्रथम संस्करण का निवेदन
जानकी-मंगल में (जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है) प्रात: स्मरणीय गोस्वामीजी ने जगज्जननी आद्याशक्ति भगवती श्रीजानकीजी तथा परात्पर पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम के परम मंगलमय विवाहोत्सव का बड़े ही मधु शब्दों में वर्णन किया है। जनकपुर में स्वयंवर की तैयारी से आरम्भ करके विश्वामित्र के अयोध्या जाकर श्रीराम-लक्ष्मण को यज्ञ-रक्षा के व्याज से अपने साथ ले आने, यज्ञ-रक्षा के के अनन्तर धनुष-यज्ञ दिखाने के बहाने उन्हें जनकपुर ले जाने, रंग-भूमि में पधारकर श्रीराम के धनुष तोड़ने तथा श्रीजनकराजतनया के उन्हें वरमाला पहनाने, लग्न,-पत्रिका तथा तिलककी सामग्री लेकर जनक पुरोधा महर्षि शतानन्दजी के अयोध्या जाने, महाराज के दशरथ के बारात लेकर जनकपुर जाने, विवाह-संस्कार सम्पन्न होने के अनन्तर बारात के बिदा होने, मार्ग में भृगुनन्दन परशुरामजी से भेंट होने तथा अन्त में अयोध्या पहुँचने पर वहाँ आनन्द मनाये जाने आदि प्रसंगों का संक्षेप में बड़ा ही सरस एवं सजीव वर्णन किया गया है; जो प्राय: रामचरितमानस से मिलता-जुलता ही है। कहीं-कहीं तो रामचरितमानस के शब्द ही ज्यों-के-त्यों दुहराये गये हैं।
इस छोटे-से ग्रन्थ का सरल भावानुवाद कई वर्ष पूर्व कवितावली के टीकाकार हमारे पूर्वपरिचित स्वर्गीय श्रीइन्द्रदेवनारायणसिंहजीने किया था, जिसका हमारे अपने श्रीमुनिलालजी (वर्तमान स्वामी श्रीसनातनदेवजी) ने बड़े परिश्रम एवं प्रेम से संशोधन भी कर दिया था। परन्तु इच्छा रहते भी इतने लम्बे काल तक उसे छापने का सुयोग नहीं उपस्थित हुआ। श्रीसीतारामजी की कृपा से वह स्वर्ण-अवसर अब प्राप्त हुआ है और पूज्य गोस्वामीजी की यह मंगलमयी कृति सरल अनुवादसहित श्रीरामभक्तों की सेवा में सादर प्रस्तुत की जा रही है। अनुवाद कैसा हुआ, इसकी परख तो विज्ञ पाठक ही कर सकेंगे। पाठ अथवा अर्थ में जहाँ कहीं भ्रमवश तथा दृष्टि दोष से भूलें रह गयी हों, उनकी ओर यदि कोई महानुभाव हमारा ध्यान आकृष्ट कराने की कृपा करेंगे तो हम उनके कृतज्ञ होंगे तथा अगले संस्करण में उन भूलों को सुधारने की चेष्टा करेंगे। श्रीसीताराम जी के इस परम पावन चरित्र के अनुशीलन से जनता का अशेष मंगल होगा- इसी आशा से उनकी यह वस्तु उन्हीं के पाद-पद्मों में निवेदित है।
इस छोटे-से ग्रन्थ का सरल भावानुवाद कई वर्ष पूर्व कवितावली के टीकाकार हमारे पूर्वपरिचित स्वर्गीय श्रीइन्द्रदेवनारायणसिंहजीने किया था, जिसका हमारे अपने श्रीमुनिलालजी (वर्तमान स्वामी श्रीसनातनदेवजी) ने बड़े परिश्रम एवं प्रेम से संशोधन भी कर दिया था। परन्तु इच्छा रहते भी इतने लम्बे काल तक उसे छापने का सुयोग नहीं उपस्थित हुआ। श्रीसीतारामजी की कृपा से वह स्वर्ण-अवसर अब प्राप्त हुआ है और पूज्य गोस्वामीजी की यह मंगलमयी कृति सरल अनुवादसहित श्रीरामभक्तों की सेवा में सादर प्रस्तुत की जा रही है। अनुवाद कैसा हुआ, इसकी परख तो विज्ञ पाठक ही कर सकेंगे। पाठ अथवा अर्थ में जहाँ कहीं भ्रमवश तथा दृष्टि दोष से भूलें रह गयी हों, उनकी ओर यदि कोई महानुभाव हमारा ध्यान आकृष्ट कराने की कृपा करेंगे तो हम उनके कृतज्ञ होंगे तथा अगले संस्करण में उन भूलों को सुधारने की चेष्टा करेंगे। श्रीसीताराम जी के इस परम पावन चरित्र के अनुशीलन से जनता का अशेष मंगल होगा- इसी आशा से उनकी यह वस्तु उन्हीं के पाद-पद्मों में निवेदित है।
विनीत हनुमानप्रसाद पोद्दार
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